Kalashtami Vrat (kalashtami may 2025) जिसे Bhairav Ashtami के नाम से भी जाना जाता है, भगवान शिव के रौद्र रूप भगवान काल भैरव को समर्पित एक प्रमुख व्रत है। यह व्रत हर महीने कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है और इस दिन श्रद्धालु भैरव जी की विशेष पूजा अर्चना करते हैं। साल में कुल 12 बार (और अधिक मास में 13 बार) यह पर्व आता है। इस व्रत में भगवान काल भैरव की पूजा करके जीवन की नकारात्मक ऊर्जा, बाधाओं और पापों से मुक्ति पाई जाती है।
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kalashtami may 2025 का विशेष महत्व
मार्गशीर्ष मास की कृष्ण पक्ष अष्टमी को आने वाली कालाष्टमी को विशेष रूप से कालभैरव जयंती कहा जाता है। अगर यह तिथि रविवार या मंगलवार को पड़े तो इसका महत्व और बढ़ जाता है क्योंकि यह दिन स्वयं भैरव जी को समर्पित होते हैं। भक्तगण इस दिन व्रत रखते हैं, उपवास करते हैं और भगवान शिव, माता पार्वती एवं काल भैरव की पूजा विधिपूर्वक करते हैं।
पूजन विधि एवं सामग्री
प्रातःकाल स्नान के बाद पूजा स्थल पर भैरव जी की प्रतिमा स्थापित करें। फिर सरसों के तेल का दीपक जलाएं। इसके बाद चंदन, धूप, अक्षत, गुड़, नारियल, गुलाब, दूध, मावे और मिठाई अर्पित करें। काली वस्तुओं जैसे काले तिल, काले वस्त्र और काले कुत्तों को भोजन देना भी अत्यंत शुभ माना जाता है क्योंकि यह काल भैरव की सवारी माने जाते हैं।
कालाष्टमी व्रत के नियम और सावधानियाँ
इस दिन उपवास के साथ आत्मा की शुद्धि के लिए प्रार्थना करनी चाहिए। पितरों को तर्पण देना, और काले कुत्तों को भोजन कराना पुण्यदायी होता है। कालभैरव की आरती और स्तोत्र का पाठ करें। इस दिन रात्रि में जागरण और भजन-कीर्तन करना विशेष फलदायी होता है।
काल भैरव मंत्र (kaal bhairav mantra)
“ह्रीं वटुकाय आपदुद्धारणाय कुरुकुरु बटुकाय ह्रीं।”
“ॐ हौं ह्रीं हूं ह्रौं क्षमं क्षेत्रपालाय काल भैरवाय नमः।”
इन मंत्रों का जाप करते समय पूर्ण श्रद्धा और एकाग्रता से ध्यान करें। इससे मानसिक शक्ति, साहस और आत्मविश्वास में वृद्धि होती है।
कालाष्टमी व्रत की कथा (kalashtami vrat katha in hindi)
पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार भगवान विष्णु और ब्रह्मा जी में श्रेष्ठता को लेकर विवाद हो गया। यह विवाद इतना बढ़ गया कि सभी देवगण भगवान शिव के पास समाधान हेतु पहुंचे। तब भगवान शिव ने एक सभा का आयोजन किया, जिसमें सभी ऋषि-मुनियों के साथ विष्णु और ब्रह्मा भी उपस्थित हुए।
सभा में लिए गए निर्णय को विष्णु जी ने स्वीकार कर लिया, लेकिन ब्रह्मा जी असंतुष्ट होकर भगवान शिव का अपमान करने लगे। तब शिव जी ने रौद्र रूप धारण कर लिया और उस रूप से भगवान काल भैरव प्रकट हुए। काल भैरव ने अपने त्रिशूल से ब्रह्मा जी का एक सिर काट दिया जिससे ब्रह्मा जी को अपने अपमान का बोध हुआ और अंततः ज्ञान प्राप्त हुआ।
कालाष्टमी व्रत के लाभ
- इस व्रत से पाप और दोषों का नाश होता है।
- कुंडली में शनि, राहु, केतु, मंगल के अशुभ प्रभाव शांत होते हैं।
- व्यक्ति को भय, कष्ट, रोग और बाधाओं से मुक्ति मिलती है।
- यह व्रत आत्मबल और सकारात्मक ऊर्जा को बढ़ाता है।
- जीवन में सुख-शांति और समृद्धि लाता है।
निष्कर्ष
Kalashtami Vrat (kalashtami may 2025) का धार्मिक और ज्योतिषीय महत्व अत्यंत गहरा है। जो भी श्रद्धालु भैरव जी की विधिपूर्वक पूजा करते हैं, उन्हें हर प्रकार के संकट से मुक्ति और शांति की प्राप्ति होती है। यह व्रत विशेष रूप से उन लोगों के लिए अनुकूल है जो जीवन में भय, भ्रम या ग्रहदोष जैसी परेशानियों से गुजर रहे हैं।
Disclaimer: इस लेख में दी गई जानकारी विभिन्न ज्योतिषीय गणनाओं, पंचांग, धार्मिक ग्रंथों और मान्यताओं के आधार पर प्रस्तुत की गई है। हिन्दीसनातन इस जानकारी की सत्यता या सटीकता का दावा नहीं करता है। पाठकों से अनुरोध है कि इसे केवल जानकारी के रूप में लें और किसी भी धार्मिक या आध्यात्मिक निर्णय से पहले विशेषज्ञ की सलाह लें। हमारा उद्देश्य किसी भी प्रकार के अंधविश्वास या गलत धारणाओं को बढ़ावा देना नहीं है।