apara ekadashi vrat katha: ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को अपरा एकादशी कहा जाता है। इस पावन तिथि पर भगवान विष्णु की विशेष आराधना की जाती है। मान्यता है कि इस दिन व्रत करने से भगवान श्रीहरि विष्णु भक्तों के जीवन से समस्त कष्टों और बाधाओं को दूर कर देते हैं। अपरा एकादशी को अचला एकादशी, जलक्रीड़ा एकादशी और भद्रकाली एकादशी नामों से भी जाना जाता है।
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apara ekadashi ka mahatva
इस एकादशी पर श्रद्धापूर्वक व्रत और पूजन करने से व्यक्ति को अपार पुण्य लाभ प्राप्त होता है, इसलिए इसका नाम अपरा एकादशी पड़ा। ऐसी मान्यता है कि इस दिन विधिवत पूजा करने से सभी इच्छाएं पूर्ण होती हैं तथा जीवन में यश, संपत्ति, ऐश्वर्य और उत्तम स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है। यह भी कहा गया है कि इस व्रत से ब्रह्म हत्या, झूठ बोलना, परनिंदा, पिशाच योनि, और अपवित्र शास्त्रों का पाठ करने जैसे पाप भी नष्ट हो जाते हैं।
जो पुण्य कार्तिक पूर्णिमा पर तीनों पुष्करों में स्नान से, पितरों को गंगातट पर पिंडदान करने से, मकर संक्रांति के दिन प्रयागराज में स्नान करने से, शिवरात्रि व्रत, गोमती स्नान, केदारनाथ-बद्रीनाथ के दर्शन, सुवर्ण दान या अर्द्ध प्रसूता गाय के दान से प्राप्त होता है वही पुण्य अपरा एकादशी के व्रत से प्राप्त होता है।
apara ekadashi का पारण समय और तिथि (Apara Ekadashi 2025 Parana Time)
अपरा एकादशी व्रत शुक्रवार, 23 मई 2025 को रखा जाएगा। यह एकादशी विशेष पुण्य प्रदान करने वाली मानी जाती है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा और व्रत का विशेष महत्व होता है।
पारण:
- पारण तिथि: 24 मई 2025
- पारण (व्रत तोड़ने का समय): सुबह 05:35 बजे से 08:19 बजे तक
- द्वादशी समाप्त होने का समय: 24 मई को शाम 07:20 बजे
एकादशी तिथि प्रारंभ और समाप्त:
- एकादशी प्रारंभ: 23 मई 2025 को रात 01:12 बजे
- एकादशी समाप्त: 23 मई 2025 को रात 10:29 बजे
apara ekadashi vrat vidhi
इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें और शुद्ध होकर पूजा की तैयारी करें। घर के मंदिर में दीप जलाएं और भगवान विष्णु का गंगाजल से अभिषेक करें। इसके बाद उन्हें पुष्प और तुलसी दल अर्पित करें। भगवान की कथा, चालीसा का पाठ करें और आरती उतारें।
भगवान को नैवेद्य अर्पित करें, जिसमें तुलसी का पत्ता अवश्य हो। ऐसी मान्यता है कि तुलसी के बिना भगवान विष्णु भोग स्वीकार नहीं करते। इस दिन लक्ष्मी माता की पूजा करना भी अत्यंत फलदायक माना गया है। दिनभर भगवान विष्णु का नामस्मरण और भजन-कीर्तन करें। द्वादशी को ब्राह्मणों को भोजन करवाकर दक्षिणा दें और फिर व्रत का पारण करें।
apara ekadashi vrat katha
प्राचीन काल में महीध्वज नामक एक धर्मपरायण राजा था, जिसका छोटा भाई वज्रध्वज अत्यंत क्रूर और अधर्मी था। दुष्टता की भावना से प्रेरित होकर उसने एक रात अपने बड़े भाई महीध्वज की हत्या कर दी और उसके शव को जंगल में एक पीपल के नीचे गाड़ दिया। असमय मृत्यु के कारण राजा की आत्मा प्रेत रूप में उसी पीपल पर भटकने लगी।
वह स्थान भयावह बन गया और आसपास के लोगों को परेशान करने लगा। एक दिन वहां से गुजर रहे धौम्य ऋषि ने अपनी तपोबल से स्थिति को भांप लिया और प्रेत की पीड़ा को समझा। उन्होंने प्रेत को नीचे उतारा और उसे परलोक विद्या का उपदेश दिया।
दयालु ऋषि ने स्वयं अपरा एकादशी का व्रत किया और द्वादशी को व्रत का पुण्य उस प्रेतात्मा को समर्पित कर दिया। इस पुण्य के प्रभाव से राजा को प्रेत योनि से मुक्ति मिली और वह स्वर्ग को चला गया। कहा जाता है कि जो भी श्रद्धा से इस व्रत को करता है या इसकी कथा सुनता है, उसे समस्त पापों से मुक्ति प्राप्त होती है।
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